न्यूज नालंदा – मां मंगला गौरी: नवरात्र के सात दिन गर्भगृह में प्रवेश वर्जित, जानें मान्यताएं ….
आरके सिंह की रिपोर्ट – 7903735887
बिहार शरीफ के पंडित गली मोहल्ले में मां मंगला गौरी की अतिप्राचीन मंदिर है। इनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक है। दर्शन-पूजन के लिए सालों भर भक्तों का रेला लगा रहता है। नवरात्र में वैदिक तांत्रिक विधि से मां की आराधना होती है। सात दिनों तक मां के गर्भगृह में महिला और पुरुष श्रद्धालुओं का प्रवेश पूर्णत: वर्जित रहता है। सिर्फ पुजारी और कलश स्थापन करने वाले भक्त ही अंदर जाते हैं।
विशेष यह कि नवरात्र के पहले दिन कलश के रूप में ढकनी स्थापित की जाती है। नारियल, लौंग, इलाइची, चावल आदि से पूजा होती है। अष्टमी के दिन प्रधान कलश की स्थापना की जाती है। सातों दिन मां का सात प्रकार का भोग लगाया जाता है। एक नहीं कई अखंड दीप जलाये जाते हैं। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगीं गयीं मुरादें मातारानी जरूरी पूरी करती हैं।
सप्तमी को शाही स्नान :-
सप्तमी के दिन मां मंगला गौरी का शाही स्नान कराया जाता है। दही, दूध, शहद, गन्ना का रस, गुलाबजल, गंगाजल आदि से मां को शाही स्नान कराया जाता है। अष्टमी के दिन मातारानी का विशेष शृंगार करने के बाद ही श्रद्धालुओं को दर्शन की अनुमति दी जाती है। महिलाएं इनकी गोदभराई करती हैं।
अष्टमी को तीन पहर महाआरती:
वैसे तो सालों भर शाम छह बजे मां की आरती उतारी जाती है। लेकिन, नवरात्र की अष्टमी को मां की तीन पहर आरती की जाती है। रात 9 बजे पहली आरती। 12 बजे दूसरी आरती और अहले सुबह 4 बजे तीसरी आरती होती है। खास यह भी कि भक्तों को आशीर्वाद के रूप में चंदन का लेप लगाया जाता है।
मां के दरबार में नारियल की बली:
मां के दरबार में पशु की जगह नारियल की बली दी जाती है। शारदीय नवरात्र में अष्टमी के दिन नारियल की बली पड़ती है। जबकि, चैत्र नवरात्र में माता की चरणों में बेल फल अर्पित किया जाता है। मान्यता है कि विशेष पूजा में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की झोली मां जरूर भरती हैं।
जलते हैं कई अखंड दीप:
मां के दरबार में नवरात्र के दौरान एक नहीं कई अखंड दीप जलते हैं। जिन भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं या जिन्हें कुछ मन्नत मांगनी होती है, वे मंदिर में घी के अखंड दीप जलाते हैं।
सपने में आयी थीं मातारानी:
मंदिर के पुजारी धनंजय कुमार पांडेय बताते हैं कि मां मंगला गौरी का मंदिर करीब पांच सौ साल पुराना है। उनके पूर्वजन को मां ने स्वप्न दिया था और कहा था कि मुझे बाहर निकालो। मैं जमीन के अंदर हूं। मुझे बहुत गर्मी लगती है। शुरुआत में उन्हें विश्वास नहीं हुआ। लेकिन, बार-बार मां के स्वप्न में आने पर मोहल्ले के लोगों के सहयोग से जहां पर वर्तमान में मंदिर स्थापित है, उसके बगल में खुदाई की गयी। उसके बाद मां की प्रतिमा का अग्र भाग दिखा तो लोगों ने मां मंगला गौरी की जय जयकार करने लगे। उसके बाद प्रतिमा को निकालकर विधि विधान से उसकी स्थापना की गयी।
अष्ट कमल पर विराजमान हैं मां मंगला गौरी :
मंगला गौरी अष्ट कमल पर विराजन हैं। इनकी सवारी शेर है। इनके दाएं और बाएं मां लक्ष्मी और मां सरस्वती हैं। अगल-बगल में दो फूलझड़ियां (पंखा झेलनी वालीं) खड़ी हैं। अपने दो हाथों में चिमटा लेकर माता रानी योगिनी को पकड़ी हुई हैं। एक हाथ में फरसा धारण की हुई हैं तो दूसरा हाथ अभयमुद्रा में है। सतह पर पांच फीट लंबी प्रतिमा दिखती है, शेष जमीन के अंदर है।
मां के चमत्कार अनेक:
मां मंगला गौरी के चमत्कार के बारे में कई मान्यताएं हैं। मंदिर के पुजारी कहते हैं कि जो भी सच्चे दिल से माता की आराधना करते है माँ उनकी मनोकामना अवश्य पूरा करती हैं |