November 15, 2024

न्यूज नालंदा-प्राचीन उदंतपुरी विवि.की भूमि और भग्नावशेष हो गए गायब, ताइवानी दल ने कहा…

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राज की रिपोर्ट ( 7903735887 )

नालंदा भ्रमण पर आए ताइवानी दल बुधवार को शहर के किलापर मोहल्ला पहुंचा। दल में 30 ताइवानी लोग शामिल थे। टीम प्राचीन उदंतपुरी विश्वविद्यालय के भग्नावशेष के भ्रमण को आया था। उनके साथ नालंदा के गाइड संजय कुमार भी थे। पर्यटक घटों प्राचीन अवशेष और उसकी भूमि को खोजते रहे। उन्हें भग्नावशेष की जगह ऊंची-ऊंची इमारते मिली। ऐतिहासिक धरोहर का कहीं नामोनिशान नहीं दिखा। इसके बाद आह भरते हुए पर्यटक सरकार को कोसते हुए लौट गए।

सरकार पर संरक्षण में अनदेखी का आरोप
गाइडों के द्वारा पर्यटकों ने कहा कि- सरकार की अनदेखी के कारण ऐतिहासक महत्व का अवशेष समाप्त हो गया। प्राचीन उदंतपुरी विश्वविद्याय की भूमि का अतिक्रमण कर ऊंची-ऊंची इमारत खड़ी कर दी गई है। बचे अवशेषों को भी सरकार आर्किलॉजिकल विभाग को सौंप दे तो विलुप्त हो रहे इतिहास को बचाया जा सकता है। खुदाई नहीं होने के कारण स्वर्णिम इतिहास धरती की गर्भ में समाता चला गया।

12 हजार छात्र करते थे शिक्षा ग्रहण
उदंतपुरी विश्‍वविद्यालय भी नालंदा और विक्रमशिला की तरह विश्व में विख्यात था। उत्‍खनन कार्य नहीं होने के कारण यह धरती के गर्भ समा गया। जिसके कारण बहुत कम लोग इस विश्‍वविद्यालय के इतिहास से परिचित हैं। अरब लेखकों ने इसकी चर्चा ‘अदबंद’ के नाम से की है, वहीं ‘लामा तारानाथ’ ने इसे ‘उदंतपुरी महाविहार’ को ‘ओडयंतपुरी महाविद्यालय’ कहा है।
इतिहासकारों ने लिखा है कि नालन्दा विश्‍वविद्यालय जब अपने पतन की ओर अग्रसर हो रहा था, उसी समय इस विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना की गई थी। इसकी स्‍थापना प्रथम पाल नरेश गोपाल ने सातवीं शताब्‍दी में की थी। ख़िलजी का आक्रमण तिब्‍बती पांडुलिपियों से ऐसा ज्ञात होता है कि इस महाविहार के संचालन का भार ‘भिक्षुसंघ’ के हाथ में था, किसी राजा के हाथ नहीं। सम्भवतः उदंतपुरी महाविहार की स्‍थापना में नालंदा महाविहार और विक्रमशिला महाविहार के बौद्ध संघों का मतैक्‍य नहीं था। संभवतया इस उदंतपुरी की ख्‍याति नालंदा और विक्रमशिला की अपेक्षा कुछ अधिक बढ़ गई थी। यहां 12 हजार छात्र शिक्षा ग्रहण करते थे। तभी तो मुहम्‍मद बिन बख़्तियार ख़िलजी का ध्‍यान इस महाविहार की ओर गया और उसने सर्वप्रथम इसी को अपने आक्रमण का पहला निशाना बनाया।

1197 में खिलजी ने किया था नष्ट
ख़िलजी 1197 ई. में सर्वप्रथम इसी की ओर आकृष्‍ट हुआ और अपने आक्रमण का पहला निशाना बनाया। उसने इस विश्‍वविद्यालय को चारों ओर से घेर लिया, जिससे भिक्षुगण काफ़ी क्षुब्‍ध हुए और कोई उपाय न देखकर वे स्‍वयं ही संघर्ष के लिए आगे आ गए, जिसमें अधिकांश तो मौत के घाट उतार दिए गए। कुछ भिक्षू बंगाल तथा उड़ीसा की ओर भाग गए और अंत में इस विहार में आग लगवा दी गई।

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