न्यूज नालंदा-ज्ञान और समानता के निर्मल साधक थे संत रविदास
राज की रिपोर्ट ( 9334160742 )
बिहारशरीफ के बबुरबन्ना मोहल्ले में साहित्यिक मंडली ‘शंखनाद’ नालंदा के तत्वावधान में सविता बिहारी निवास स्थित सभागार में देश के सामाजिक क्रांति के अग्रदूत, संत कुलभूषण, जन कवि संत शिरोमणि रविदास की 643 वीं जयंती साहित्यकार डॉ० लक्ष्मीकांत सिंह की अध्यक्षता में समारोहपूर्वक मनाई गई। इस मौके पर जन कवि संत शिरोमणि रविदास के तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित व दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। इस अवसर पर शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ० लक्ष्मीकांत सिंह ने लोगों को संबोधित करते हुए बताया कि संत कुलभूषण कविराज संत शिरोमणि रविदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया। उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है, उन्होंने कहा कि संत रविदास मध्ययुगीन इतिहास के संक्रमण काल में हुए थे। उस समय ब्राह्मणों की पैशाविक मनोवृति से दलित और उपेक्षित पशुवत जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य थे। संत रैदास यह सब देखकर बहुत विचलित होते थे उनकी समन्वयवादी चेतना इसी का परिणाम है। उनकी स्वानुभूतिमयी चेतना ने भारतीय समाज में जागृति का संचार किया और उनके मौलिक चिंतन ने शोषित और उपेक्षित शूद्रों में आत्मविश्वास का संचार किया।
साहित्यिक मंडली ‘शंखनाद’ नालंदा के सचिव राकेश बिहारी शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि कविराज संत शिरोमणि रविदास उन महान सन्तों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इनकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग रही है, जिससे जनमानस पर इनका अमिट प्रभाव पड़ता है। रविदास जी भारत के महान संत, समाज सुधारक और जनमानस के कवि थे। हिंदू पंचांग के अनुसार माघ माह की पूर्णिमा के दिन संत कविराज रविदास की जयंती मनाई जाती है। दरसअल, संत रविदास का जन्म इसी दिन का माना जाता है। संत रविदास को कई प्रसिद्ध दोहों व पद रचना के लिए जाना जाता है। “मन चंगा तो कठौती में गंगा” का कथन उन्हीं का दिया हुआ है। इसका अर्थ है की अगर मन साफ है और विचार निर्मल हैं तो घर में ही तीर्थ है। उन्होंने समाज और लोगों के जीवन में बेहतरी के लिए बहुत से कार्य किए। डॉ राजीव कुमार शर्मा ने कहा कि रविदासजी ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया। संत रविदास भारत के उन चुनिंदा महापुरुषों में से एक हैं, जिन्होंने अपने रूहानी वचनों से सारे संसार को एकता और भाईचारे का पाठ पढ़ाया। संत रविदास कबीर के समसामयिक कहे जाते हैं। मध्ययुगीन संतों में रविदास का महत्वपूर्ण स्थान है।डॉ आनंद आनंद वर्द्धन ने अपने सम्बोधन में खा कि संत रविदास मध्ययुगीन इतिहास के संक्रमण काल में हुए थे, उस समय ब्राह्मणों की पैशाविक मनोवृति से दलित और उपेक्षित पशुवत जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य थे। संत रविदासजी यह सब देखकर बहुत विचलित होते थे, उनकी समन्वयवादी चेतना इसी का परिणाम है। उनकी स्वानुभूतिमयी चेतना ने भारतीय समाज में जागृति का संचार किया और उनके मौलिक चिंतन ने शोषित और उपेक्षित लोगों में आत्मविश्वास का संचार किया। रविदास के लगभग 200 पद मिलते हैं, जिनकी भाषा बोलचाल की सीधी-सादी भाषा है, किंतु भाव की तन्मयता के कारण प्रभावशाली है। ये गुरु-भक्ति नाम स्मरण, प्रेम, कर्तव्य पालन तथा सत्संग को महत्व देते थे।कवि उमेश प्रसाद ‘उमेश’ ने रविदास जी को संत के रूप में याद करते हुए कहा कि उनके सामाजिक संदेश को ग्रहण करने की जरूरत है, तभी हम सब लक्ष्य को पा सकेंगे। कवि संत शिरोमणि रविदास ने अपनी रचनाओं के जरिए समाज में हो रही बुराइयों को दूर करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
अजय कुमार सिंह ने कहा कि आज भी संत रविदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता है। विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण संत रविदास को अपने समय के समाज में अत्यधिक सम्मान मिला और इसी कारण आज भी लोग इन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं। संत रविदास जी बाह्य आडंबर और बाह्य आचरण के घोर विरोधी थे। वे मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा आदि में बिल्कुल यकीन नहीं करते थे। वे व्यक्ति की निश्छल भावना और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे। यही कारण है कि रविदासजी की काव्य-रचनाओं में सरलता के साथ व्यावहारिकता का समर्थन मिलता है। संत रविदास दूसरों की मदद करने में सबसे आगे थे। रविदास कभी किसी की मदद करने से पीछे नहीं हटते थे।दीपक कुमार ने कहा कि आज भी सन्त रविदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया है, कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता है। विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण संत रविदास को अपने समय के समाज में अत्यधिक सम्मान मिला और इसी कारण आज भी लोग इन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं।
इस मौके पर इतिहासकार तुफैल अहमद खां सूरी, समाजसेवी धीरज कुमार, शिक्षक भाई मुकेश कुमार, समाजसेविका सविता बिहारी, नाटककार शिक्षक रामसागर राम, दीपक कुमार गुप्ता, शिक्षक कन्हैया पाण्डेय, समाजसेविका अनिता देवी, सरिता देवी, बिंदु देवी, पुष्पा देवी, रिंकू देवी, विभा देवी, स्वाति कुमारी, प्रियंका कुमारी, सुषमा देवी, अलोचना देवी, मंजू देवी, अनुष्का कुमारी, अर्चना कुमारी, सहित दर्जनों लोग उपस्थित हुए।