न्यूज नालंदा – जज्बे को सलाम :- मशरूम लेडी मधु पटेल बनीं पर्ल क्वीन,मोती की खेती कर पेश की मिसाल….
वरीय संवाददाता की रिपोर्ट – 7079013889
सूबे में पहली बार नालंदा की धरती पर मोती (पर्ल) की खेती शुरू की गयी है। मशरूम लेडी के नाम से विख्यात मधु पटेल ने मोती की सफल खेती कर दिखायी तो लोग उन्हें पर्ल क्वीन के नाम से पुकारने लगे हैं। मधु पटेल का दायरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। पहले जिलेभर की महिलाएं उनसे सीखने आती थीं। अब सूबे ही नहीं, कई राज्यों की महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गयी हैं। जिले में तो ‘खेती में विशेष’ का पर्याय बन गयी हैं। कोई महिला किसान नया करने की सोचती हैं तो कहा जाता है-क्या तूं भी मधु पटेल बनने की सोच रही है।
बतौर मधु-‘जब मोती की खेती की सोची तो परिजनों के साथ ही यहां के कृषि अधिकारी भी मुंह ढंक हंसकर अट्टाहास करते थे। मोती की खेती और नालंदा में, असंभव। ऐसा कहकर अधिकारी मदद से मुँह मोड़ लेते। लेकिन, मेरे पति (धर्मदत्त सिंह) ने कभी साथ नहीं छोड़ा। बल्कि, मेरे जोश, जज्बा व जुनून को सींचते रहे। सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वाटर एक्वाकल्चर (सिफा) में ट्रेनिंग दिलवायी। इतना ही नहीं, मोती की खेती में पहले साल सफल न होने के बाद भी निराश न होने दिया।’ दूसरे साल उनकी कोशिश पूरी तरह सफल है। यही कारण है कि सिफा के अध्यापक डॉ. शैलेश सौरभ ने पर्ल क्वीन का खिताब दिया है। पहले साल 6 हजार सीप में से महज 23 घोंघे ही बचे थे।
अध्यापक ने कहा-मधु अन्य से अलहदा:
अध्यापक श्री सौरभ व जिला कृषि सलाहकार कुमार किशोर नंदा ने कहा कि सीप की क्वालिटी पहचानने की बात हो या सीप सर्जरी की। सीप को पालने की बात हो या उत्पाद की गुणवत्ता-सबमें मधु अन्य से अलहदा हैं। यही कारण है कि मधु द्वारा की जा रही मोती की खेती को देखने देशभर के लोग आने लगे हैं। मोती उत्पादन के छह प्रमुख चरण होते हैं- सीपों को इकट्ठा करना, इस्तेमाल से पहले उन्हें अनुकूल बनाना, सर्जरी, देखभाल, तालाब में उपजाना और मोतियों का उत्पादन।
मैट्रिक के बाद ही हुई शादी:
महज मैट्रिक ही पास की थीं कि मधु की शादी कर दी गयी। लेकिन, उनकी पढ़ने की बिंदास ललक व कुछ नया करने के जज्बात ने महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बना दिया। करीब 8 साल पहले तत्कालीन डीएओ सुदामा महतो और डीएचओ डीएन महतो के कहने पर मशरूम की ट्रेनिंग ली। लेकिन, उसमें वह इस तरह समायीं कि बिहार का पहला मशरूम स्पॉन उत्पादन फैक्ट्री खोल दी। अब उसके अलावा मोती की खेती करने लगी हैं।
बाजार की दिक्कत नहीं:-
सीप के अंदर डिजायनर बीड यानि किसी भी आकृति (गणेश, ईसा, क्रॉस, फूल आदि) का फ्रेम डाल देते हैं। खेती के बाद उत्पाद को बेचना ही सबसे बड़ी बात होती है। लेकिन, मोतियों के बारे में ऐसा बिल्कुल नहीं है। हैदराबाद, सूरत, अहमदाबाद, मुंबई आदि बड़े शहरों में मोती के हजारों व्यापारी मोतियों का कारोबार करते हैं। भारत में सालाना 20 हजार करोड़ का मोतियों का कारोबार है। भारत में बड़ी मात्रा में मोती पैदा किए जाते हैं। बावजूद, हर साल करीब 50 करोड़ रुपए से अधिक के मोती आयात किये जाते हैं।
आर्थिक पक्ष:-
प्रति हेक्टेयर 20 से 30 हजार सीप पाला जा सकता है। उत्पादकता बढ़ाने के लिए तालाबों में जैविक और अजैविक खाद डाली जाती है। गोल मोतियों का संग्रहण पालन अवधि खत्म हो जाने के बाद सीपों को निकाल लिया जाता है। इसमें मोती की खेती पर करीब साढ़े चार लाख रुपये लागत आती है। जबकि, महज 60 फीसदी सफल खेती होने पर 8 लाख का उत्पाद तैयार होता है। यह औसत है। लेकिन, मधु पटेल की खेती 80 से 90 फीसदी सफल है।
क्या बोले डीएम :-
जिले ही नहीं सूबे की महिलाओं के लिए मधु पटेल प्रेरणास्रोत बन गयी हैं। सूबे में पहली बार मोती की खेती कर रही हैं। साथ ही, इसकी ट्रेनिंग देने में भी उनकी महारत ने विशेषज्ञों को भी आश्चर्यचकित कर दिया है।