न्यूज नालंदा – नीतीश के गढ़ में कुशवाहा की हुंकार, जानें उनका राजनीतिक सफर
सौरभ – 7903735887
जदयू से नाता तोड़ने के बाद राष्ट्रीय लोक जनता दल के अध्यक्ष सह पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा बुधवार को विरासत बचाओ नमन यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले से की।
सर्वप्रथम उनका काफिला एकंगरसराय पहुंचा, जहां उन्होंने समाजसेवी लाल सिंह त्यागी के स्मारक पर माल्यार्पण किया। इसके बाद बिहारशरीफ पहुंचे। अम्बेर चौक पर गुरुसहाय लाल की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर आमजनों को संबोधित किया।
कहा कि यह विरासत बचाओ नमन यात्रा है। हम उस विरासत की बात करने आए हैं। जिस विरासत को आगे ले चलने का दायित्व बिहार के लोगों ने 2005 में बड़ी कुर्बानी देकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दिया था।
2005 में नीतीश कुमार ने अपने हाथों में बिहार का दायित्व लिया। इतना अच्छा कार्य उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान किया कि बिहार याद रखेगा। सीएम ने जंगल राज्य से सूबे को बाहर निकाल, कानून के राज्य का बनाया। कुछ महीने से राष्ट्रीय जनता दल के साथ उनका डील हो गया है। जिस जंगल राज की बात कह हमलोग बिहार को 2005 में मुक्ति दिलाये थे। नीतीश उसी के पास जदयू को गिरवीं रखना चाह रहे हैं। वह पार्टी को गिरवीं रख सकते हैं, मगर बिहार को नहीं।
जानें कुशवाहा का राजनीतिक सफर
उपेंद्र कुशवाहा की छवि चुनाव से पहले पाला बदलने वाले नेता के रूप में है। 17 साल में तीन बार वो जेडीयू छोड़ चुके हैं। दो बार अपनी नई पार्टी बनाई। एनडीए और महागठबंधन के अलावा तीसरे मोर्चे का भी प्रयोग कर चुके हैं । अब एक बार फिर से वह अपनी नई पार्टी बनाए हैं।
2005 में एनडीए बिहार की सत्ता में आई थी। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे और पार्टी की जीत में अहम भूमिका निभाने वाले कुशवाहा अपनी ही सीट से चुनाव हार गए। तब नीतीश और कुशवाहा के रिश्ते में दरार आनी शुरू हो गई। हश्र ये हुआ कि कुशवाहा की अनुपस्थिति में उनके सरकारी बंगले को खाली करा दिया गया।
इसके बाद उन्होंने जेडीयू को अलविदा कर अपनी नई पार्टी बनाई। नाम रखा समता पार्टी। 2010 में विधानसभा चुनाव के पहले वह फिर से जदयू से जुड़े। जदयू कोटे से उन्हें राज्यसभा पहुंचाया गया। तीन साल बाद फिर वह अपनी ताकत आजमाने लगे। इस कारण जदयू ने फिर उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया।
मोदी लहर में बनें मंत्री
2014 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इन्होंने मार्च 2013 में अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) बनाई। 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को अपना समर्थन दिया। राज्य की तीन लोकसभा सीट से इनकी पार्टी ने चुनाव लड़ी। मोदी लहर में ये तीनों सीट जीतने में कामयाब रहे। जबकि खुद काराकाट सीट से एमपी चुने गए। इनाम में मोदी कैबिनेट में जगह मिली और मानव संसाधन राज्य मंत्री बनाए गए।
2015 के विधानसभा चुनाव में भी इनकी पार्टी दो सीट जीतने में कामयाब रही। लेकिन कुशवाहा एक बार फिर से पार्टी को संभाल नहीं पाए। एक साल के भीतर ही इनकी पार्टी में कलह शुरू हो गई। 2018 आते-आते इनकी पूरी पार्टी बिखर गई। इनके विधायक इनका साथ छोड़ जेडीयू में चले गए। 2019 के चुनाव में ये महागठबंधन का हिस्सा बने, लेकिन एक भी सीट नहीं बचा पाए। खुद दो जगह से हार गए।