November 15, 2024

न्यूज नालंदा – मघड़ा में वर्जित है शीतलाष्टमी के दिन आग जलाना, जाने क्यों  

0

राज की रिपोर्ट- 7079013889 

चैत्र कृष्ण पक्ष सप्तमी सोमवार से मघड़ा में माता शीतला के मंदिर में पूजा अर्चना के लिए श्रद्धालुओं का आना शुरू हो जाएगा | हालांकि कोरोना वायरस को लेकर इस वर्ष मेले का आयोजन नहीं किया गया है | सिर्फ श्रद्धालु पूजा अर्चना करने के लिए आ सकते हैं | इस दिन मघड़ा व इसके आसपास के कई गांवों में चूल्हा नहीं चलेगा। लोग बसिऔरा मनाएंगे। शीतला मंदिर के उपाध्यक्ष डॉ सुरेश कुमार पांडेय ने बताया कि काफी सालों बाद इस बार चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी और मंगलवार का खास संयोग बन रहा है। व्रत पर्वोत्सव के अनुसार शीतलाष्टमी व्रत करने से श्रद्धालु को दाह ज्वर, पीत ज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्रों के समस्त रोग से मुक्ति मिल जाती है। व्रत की विशेषता यह कि इसमें शीतला देवी को भोग लगाने वाला पदार्थ एक दिन पूर्व ही बना लिया जाता है। वासी भोग लगाने की परंपरा है। सोमवार की रात बारह बजे के बाद से ही मां शीतला के दरबार में पूजा-अर्चना के लिए भक्तों की कतार लग जाएगी। सबसे पहले पंडा कमेटी द्वारा मां का विशेष श्रृंगार किया जाएगा। आरती उतारी जाएगी। उसके बाद दर्शन-पूजन के लिए मंदिर का पट खोल दिया जाएगा। चैत्र अष्टी के मौके पर मां शीतला की पूजा-अर्चना के लिए सूबे के विभिन्न जिलों के अलावा झारखंड, बंगाल और उत्तर प्रदेश से भी काफी संख्या में श्रद्धालुओं आते हैं । भीड़ पर नजर रखने के लिए मंदिर परिसर में नौ सीसीटीवी कैमरे लगाये गये हैं। नियंत्रण कक्ष में तीन एईडी टीवी लगाया गया है। हर आने-जाने वालों पर नजर रखी जा रही है। मघड़ा गांव में काफी पुराना मिट्ठी कुआं है। इसी कुएं के पानी से सप्तमी की शाम में बसिऔरा के लिए भोजन तैयार किया जाता है। प्रसाद में अरवा चावल, चने की दाल, सब्जियां, पुआ, पकवान आदि बनाया जाता है। सबसे खास यह कि लाल साग जरूर बनाया जाता है।

मां शीतला का वर्ण स्कंद पुराण में है। विद्वानों का कथन है कि दक्ष प्रजापति आदिकाल में एक महायज्ञ किये थे। उस यज्ञ में वे अपने दामान वृषकेतु (शंकर जी) और अपनी पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किये थे, जबकि अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रण भेजा गया था। किसी प्रकार इसकी जानकारी जब सती को हुई थी तो वे बिना आमंत्रण के ही पिता के यहां जाने के लिए भगवान वृषकेतु से आज्ञा मांगी। परंतु उन्होंने बिना आमंत्रण के जाना अनुचित समझकर जाने से मना कर दिया। बावजूद सती नहीं मानीं और यज्ञ को देखने चली गयीं। यज्ञ मंडल में पहुंचने पर उनकी माता व बहन को खुशी हुईं, परंतु पिता बिना बुलावे के अपनी पुत्री को आये देख नाराज हो गये। अपने पिता की अपमान भरी बातों को सुनकर सती दुखी हो गयीं और योग माया से अग्नि प्रज्जवलित कर आत्मदाह कर ली। इसकी जानकारी दूत द्वारा जब वृषकेतु जी को हुआ तो वे धधकती अग्नि से सती को निकाला और क्रोध में सती के शरीर को कंधे पर रख इधर-उधर दौड़ने लगे। जब यह बात विष्णु भगवान को मालूम हुई तो उन्हें शंकर जी के क्रोध से संसार के विध्वंस होने का भय सताने लगा। तब संसार की रक्षा के लिए वे शंकर जी के कंधे पर रखे सती के शरीर पर एक सौ सात बार वाण चलाये। इससे शरीर के अंग एक सौ आठ खंड होकर भिन्न-भिन्न स्थानों पर जा गिरे। जहां-जहां सती के शरीर का खंड और आभूषण गिरे, उस स्थान को देवी के सिद्धपीठ माना गया। बाद में शंकर ने अपने कंधे पर सती के शरीर के चिपके हुए अवशेष को एक घड़े में रख बिहारशरीफ से पंचाने नदी के पश्चिमी तट पर धरती में छुपाकर अन्तरध्यान हो गये। कालांतर में मघड़ा गांव के एक ब्रह्मण को माता रानी ने स्वप्न दी कि वे नदी के किनारे जमीन के अंदर हैं। इसके बाद खुदाई कर मां की प्रतिमा निकालकर गांव के तालाब के पास स्थापित कर मंदिर का निर्माण कराया गया। खास बात यह कि मां शीतला मंदिर में दिन में दीपक नहीं जलते हैं। धूप, हुमाद व अगरबत्ती जलाना भी मना है। भगवान सूर्य के अस्त होने के बाद ही मंदिर में माता की आरती उतारी जाती है और हवन होता है। विभिन्न प्रदेशों से श्रद्धालु माता के दरबार में हाजिरी लगाने आते हैं।

तालाब में स्नान करने से चेचक से निजात:-

मां शीतला मंदिर के पास ही बड़ा सा तालाब है। मां के दर्शन को आने वाले श्रद्धालु तालाब में स्नान करने के बाद ही पूजा-अर्चना करते हैं। तालाब में स्नान करने से चेचक रोग से निजात मिल जाती है। शरीर में जलन की शिकायत है तो उससे भी राहत मिलती है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copy Not Allowed