November 15, 2024

न्यूज नालंदा – पूर्व एसपी की बढ़ सकती है मुश्किलें, जानें मामला…

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राज – 7903735887 

बिहार पुलिस में आईजी पद पर तैनात रहे आईपीएस अमित लोढ़ा की लिखी पुस्तक बिहार डायरी पर एक वेब सीरीज बनी है खाकी द बिहार चैप्टर जो इनदिनों काफी चर्चा में है | वेब सीरीज रिलीज होने के बाद अब स्वयं विवादों के घेरे में आ गए है |

वर्ष 2004 में नालंदा एसपी रहे अमित लोढ़ा व बिहार थानाध्यक्ष अरुण कुमार तिवारी के विरुद्ध केस चलाने के लिए कोर्ट ने परिवादी से सैंक्शन ऑर्डर जमा करने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई दो जनवरी को होगी। पहले भी यह निर्देश किया जा चुका था। लेकिन, परिवादी ने इस आदेश को जिला जज के यहां चुनौती दी थी। उसे त्वरित विचारण न्यायाधीशों ने खारिज कर दिया था। उच्च न्यायालय के द्वारा दिए गए निर्देश के आलोक में पुराने मामलों की सुनवाई तेजी से की जा रही है। इसी दौरान मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी देवप्रिय कुमार ने अमित लोढ़ा व थानाध्यक्ष अरुण कुमार तिवारी के विरुद्ध दायर परिवाद पत्र में सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया।

स्थानीय पुलपर मोहल्ला स्थित केनरा बैंक के तत्कालीन लिपिक दीपक कुमार ने एसपी, बिहार थानाध्यक्ष समेत अज्ञात पुलिसकर्मियों पर सीजेएम कोर्ट में परिवाद पत्र दाखिल किया था। इसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि इन्हें बैंक लूट से संबंधित मुकदमों में मुख्य साजिशकर्ता बताते हुए अभियुक्त बनाया और 15 मार्च 2004 को बैंक परिसर से बुलाकर थाना ले जाकर गिरफ्तार कर लिया। कई दिनों तक थाने में बंद रखा था।

इस दौरान परिवादी का आरोप है कि एसपी व थानाध्यक्ष ने मिलकर परिवादी दीपक कुमार से मारपीट की। कई सादे कागजात पर हस्ताक्षर लिए। मारपीट व उत्पीड़न कर आवाज को टेम्परिंग करते हुए वीडियोग्राफी की। घटना में संलिप्तता को स्वीकार करने का दबाव बनाया। परिवादी को जब 24 घंटे तक न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया, तो परिजनों ने कोर्ट में विविध वाद दायर कर शिकायत की। परिजनों द्वारा गिरफ्तारी की सूचना न्यायालय में दिए जाने के बाद उसे कोर्ट में प्रस्तुत किया गया। वहां से उसे जेल भेज दिया गया था।

इस दौरान जेल से ही उन्होंने वरीय अधिवक्ता शिवदानी सिंह के माध्यम से सीजेएम कोर्ट में परिवाद पत्र दाखिल किया था। इसमें परिवादी को दोनों आरोपितों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सैंक्शन आदेश कोर्ट में जमा करने का निर्देश 29 जून 2005 को ही दिया था। तब से परिवादी द्वारा यह सैंक्शन आदेश आज तक न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया गया। परिवादी ने न्यायालय में अपने मुकदमे में पैरवी करना भी छोड़ दिया है। इसके बाद कोर्ट ने संबंधित अधिवक्ता को भी मुकदमा से संबंधित जानकारी देने को कहा है।

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