November 15, 2024

न्यूज नालंदा – साहित्यिक मंडली ‘शंखनाद द्वारा नालंदा कॉलेज के संस्थापक बाबू ऐदल सिंह की  मनायी गयी 184 वीं जयंती समारोह….

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राज की रिपोर्ट ( 9334160742 )

साहित्यिक मंडली ‘शंखनाद नालंदा’ के तत्वावधान में महान शिक्षाविद,नालन्दा कॉलेज के संस्थापक, दानवीर राय बहादुर बाबू ऐदल सिंह की 184 वीं जयंती समारोह का आयोजन स्थानीय भैसासुर मोहल्ले में इतिहासकार, प्रोफेसर, डॉ० लक्ष्मीकांत सिंह के आवास पर स्थित कार्यालय के सभागार में मनाई गई। जिसकी अध्यक्षता इतिहासकार प्रो० डॉ० लक्ष्मीकांत सिंह ने की। समारोह में उपस्थित लोगों ने उनके तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद दीप प्रज्वलन से कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ० लक्ष्मीकांत ने कहा कि बिहार की उर्वर भूमि जुझारू एवं कर्मठ व्यक्तित्व को जन्म देती रही है। महान विद्यादानी रायबहादुर ऐदल सिंह की दूरदर्शिता, शिक्षा के प्रति उनका समर्पित भाव तथा चिंतन आज भी अद्वितीय है। नालन्दा वासियों को उनका कृतज्ञ होना चाहिए कि इस क्षेत्र के विकास के लिए उन्होंने तब सोचा था, जब लोग अपने को विकसित करने में व्यस्त थे। उन्होंने कहा कि बिहारशरीफ का नालन्दा कॉलेज, जिसकी गणना कभी राज्य के गिने-चुने श्रेष्ठ कॉलेजों में होती थी, राय बहादुर बाबु ऐदल सिंह की अमर धरोहर के रूप में आज भी खड़ा है। यद्यपि राज्य में उच्च शिक्षा की बिगड़ती हुई हालत और जनजीवन में गिरावट आने के साथ इस कॉलेज ने भी अपनी पूर्व प्रतिष्ठा खोयी है, यह आज भी क्षमतावान है और यह उस महापुरुष का पुण्य ही है, जिसने इसे पूरी तरह विनष्ट होने से बचा रखा है। राय बहादुर ऐदल सिंह का जन्म पिछली 18 वीं शताब्दी के मध्य में अस्थावाँ थाने के अंतर्गत रामी बिगहा गाँव में 13 फरवरी 1836 ईस्वी को एक कुलीन परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम यदु नारायण सिंह था। वे एक अत्यन्त ही उद्यमी एवं कर्मठ व्यक्ति थे। यदु नारायण सिंह ने राय बहादुर बाबु ऐदल सिंह की पहली शादी यमहरा में कराई थी। पहली शादी से उन्हें एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। जिनका नाम एकादश रूद्र प्रसाद नारायण सिंह रखा गया था। शादी के बाद उन्हें एक पुत्र पैदा हुआ, ये खुद और पत्नी सहित पुत्र की  मृत्यु हो गई। तब राय बहादुर बाबु ऐदल सिंह  की दूसरी शादी मित्र लाला सिंह ने खुटहा (बढिया- पटना जिला) में  कराया था। दूसरी पत्नी से कुमार कृष्ण बल्लभ नारायण सिंह उर्फ़ बौआजी का जन्म हुआ। बौआजी का दो पुत्र एक गोगा सिंह और दूसरा अशोक सिंह हुए। गोगा सिंह का एक पुत्र रौशन सिंह हुआ,और बुआजी के दुसरे पुत्र अशोक सिंह से भी एक पुत्र सोनु सिंह हुआ जिनका शादी उद्योगपति सम्प्रदा बाबु की पोती से हुआ। समाजसेवी कुमार कृष्ण बल्लभ नारायण सिंह उर्फ़ बौआजी के साथ कुलती ग्राम निवासी बाबू लाला सिंह के पुत्र पहलवान अमीर सिंह उनके साथ साये की तरह रहते थे। पहलवान अमीर सिंह किसी भी पहलवान से अपने जीवन काल में नहीं हारे थे।उन्होंने दरभंगा महाराज के पहलवान को भी हराकर  पारितोषिक हासिल किया था। पहलवान अमीर सिंह जी 1955 से लगातार अपने जीवन काल तक ग्राम पंचायत राज कुलती के मुखिया पद को सुशोभित किये थे। राय बहादुर बाबु ऐदल सिंह के परम् मित्र साये के तरह रहने वाले बाबू लाला सिंह के पुत्र पहलवान अमीर सिंह बौआ जी के परम् मित्र थे। ये भी बाबू ऐदल सिंह के समान ही अमीर सिंह अपने क्षेत्रों में कई सामाजिक कार्य किये। उन्होंने अनुसूचित जाति का गाँव बसाया और और विद्यालय खुलवाए तथा उनका सही तरीके से देख-रेख किया। अमीर सिंह के दो लडके अधिवक्ता राम प्रहलाद सिंह उर्फ़ बड़का बौआ और शिक्षक रामप्रवेश सिंह उर्फ़ छोटका बौआ का बाबु ऐदल सिंह के परिवार से आज भी घनिष्ट सम्बंध व मित्रता है। बाबु ऐदल सिंह को अपने पूर्वजों से विरासत में एक छोटी सी जमींदारी मिली थी, जिसकी आय मात्र 250 रूपये वार्षिक थी। उन्होंने अपनी लगन-मेंहनत और उद्यम के बल पर अल्पकाल में ही उसे लगभग-75000/- (पचहत्तर हजार रूपये) की वार्षिक आय वाली जमींदारी में बदल डाला तथा इसके साथ बहुत अधिक भू-सम्पत्ति भी अर्जित की, जिसका वर्तमान मूल्य कई करोड़ रुपये होंगे। वे एक लाइसेंस शुदा महाजन भी थे और उनका लेन-देन का बहुत बड़ा कारोबार था। उनकी उपलब्धियों और उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘राय बहादुर’ की उपाधि देकर सम्मानित भी किया था। यदि हम राय बहादुर बाबू ऐदल सिंह को नालन्दा के साहित्यिक कृतियों व शैक्षिक संस्थानों के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि के रूप में अभिहित करें, तो शायद अतिशयोक्ति न होगी। मौके पर ‘शंखनाद नालंदा’ के सचिव राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि बिहार में नालन्दा के कर्मयोगी दानवीर राय बहादुर बाबू ऐदल सिंह केवल एक जमींदार ही नहीं थे, अपितु वह एक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न महान समाजसेवी तथा साहित्य सेवी पुरुष थे। वह एक अनूठे चिंतक भी थे, तथा उन्होंने दीक्षित समाज का सपना देखा था। दानवीर शिरोमणि रायबहादुर ऐदल सिंह जी राष्ट्र मंदिर नालंदा कालेज के निर्माण में महर्षि दधीचि की भांति अपने शरीर की एक-एक बूंद रुधिर व अस्थि समर्पित कर देने वाले आधुनिक युग के महान कर्मयोगी एवं मौलिक चिंतक थे उन्होंने “अधिक अन्न उपजाओ और बच्चों को पढ़ाओ” का नारा दिया था। मानवीय संवेदनाओं से भरपूर यह व्यक्तित्व नालन्दा के लोगों का ही नहीं बिहार के लोगों का भी अभूतपूर्व प्यार और स्नेह मिला अंग्रेजों ने उन्हें रायबहादुर से अलंकृत किया था। रायबहादुर मधुर एवं प्रवाही भाषा के स्वामी कर्मयोगी प्रभावशाली वक्ता जो अपनी सहज तथा कर्णप्रिय बोली से लोगों को मंत्रमुग्ध कर देते थे। अधिवक्ता राम प्रह्लाद सिंह ने कहा कि स्वावलंबन के पक्षधर त्याग की प्रतिमूर्ति सामाजिक परिवेश के प्रवक्ता कर्म योग के वर्ती इस राष्ट्रभक्त के बारे में समाज सेवियो के मुखारविंद से प्रस्फुटित यह शब्द शत प्रतिशत सही प्रतीत होते हैं- “उन्हें राय बहादुर की उपाधियों ही नहीं मिली थी, जब तक भारतीय क्षितिज में सूर्य चमकता रहेगा तब तक देशवासी उन्हंउ विस्मृत नहीं कर सकते”| मगही साहित्यकार उमेश प्रसाद ‘उमेश’ ने कहा कि नि:संदेह नालन्दा केसरी त्याग के प्रतिमूर्ति रायबहादुर बाबू ऐदल सिंह जी नालन्दा के अमर सपूत थे उन्हें किसी प्रांतीय सीमा में बांधना उचित नहीं होगा उनका संपूर्ण जीवन एक तपस्वी की भांति था और वह महर्षि वेदव्यास की तरह जीवन पर्यंत देश प्रदेश की एकता और साहित्यिक विकास के लिए लगे रहे। शिक्षक संघ के नेता संजय कुमार सिन्हा ने कहा कि त्याग के प्रतिमूर्ति रायबहादुर बाबू ऐदल सिंह अपनी दानवीरता के कारण इतिहास में अमर हो गए। बाबू ऐदल सिंह की दानशीलता के प्रसंग आसपास के इलाकों में बड़े उत्साह के साथ सुने और सुनाए जाते थे। ब्रिटिश सरकार ने उनकी जनसेवा एवं प्रशासनिक क्षमताओं को देखते हुए “रायबहादुर” की उपाधि से विभूषित किया था। वैज्ञानिक प्रो० आनंद वर्द्धन ने कहा कि शिक्षा अगर अच्छी होगी, तो देश भी अच्छा होगा। समाज को ठीक करने के लिए राज्य व देश की शिक्षा व्यवस्था को ठीक करना होगा। ब्रिटेन को अगर ग्रेट ब्रिटेन कहा जाता है तो इसके पीछे का तर्क है कि वहां आक्सफोर्ड व कैंब्रिज जैसे विश्व विद्यालय रहे हैं। हमारे यहां भी नालंदा, उदन्तपुरी, तक्षशिला व विक्रमशिला जैसे संस्थान रहे थे, इसी सोच और वर्तमान समय को देखते हुए महान दानवीर रायबहादुर बाबू ऐदल सिंह ने 1920 में नालंदा कॉलेज की स्थापना की थी। रायबहादुर बाबू ऐदल सिंह लेकिन आज के समय में पूरी शिक्षा व्यवस्था ही चौपट हो गया है। उन्होंने कहा कि शिक्षा को लेकर अपनी व्यक्तिगत कमाई का इतना बड़ा दान किसी ने भी नहीं किया। इस मौके पर इतिहासकार तुफैल अहमद खां सूरी, प्रो० जितेंद्र कुमार सिंह, गजलकार नवनीत कृष्ण, समाजसेवी धीरज कुमार, समाजसेवी, मृत्युंजय नाथ गोपालजी,कवि अमन कुमार,राजीव कुमार शर्मा,कवयित्री प्रियारत्नम, संजय कुमार शर्मा,केदार प्रसाद मेहता समेत कई लोगों ने हिस्सा लिया।

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