न्यूज नालंदा – डॉ. फैज अहमद के सम्मान में बज़्म इत्तेहाद ने किया मुशायरे का आयोजन
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बिहारशरीफ छज्जू मोहल्ला में मंगलवार की देर रात कवियों का संगम हुआ। इसमें जिलेभर के शायरों ने भाग लिया। मौलाना आजाद नेशनल उर्दू विश्वविद्यालय रीजनल सेंटर दरभंगा के प्रिंसिपल व सेटेलाइट सेंटर के चेयरमैन डॉ. फैज अहमद व सीनियर सहायक प्राध्यापक डॉ. फखरुद्दीन अली अहमद के सम्मान में बिहार का प्रसिद्ध साहित्यिक संगठन बज़्म इत्तेहाद नालंदा द्वारा मुशायरा सह कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस दौरान कवियों ने एक से बढ़कर एक कविताएं सुनाईं।
बज्म के सचिव तनवीर साकित के आवास पर हुए कवि सम्मेलन में हिन्दी और उर्दू के नामचीन शायरों ने भाग लिया। इस दौरान शायर काशिफ रजा ने ‘जब मिलते हैं राकेश और काशिफ, तब जाकर होता है पूरा हिन्दुस्तान…’ गाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। जबकि, बेनाम गिलानी ने ‘संवारा था जिसे मुश्किल से मैने, वही गैसू अभी उलझा हुआ है। प्रो. इम्तियाज अहमद माहिर ने ‘अब तो जलता ही नहीं सदियों से इस घर का चिराग, मेरे आंगन में पहुंचती है गली की रौशनी’। गुफरान नजर ने ‘तकरीर पर नजर है न तहरीर पर नजर,हर शख्स की नजर में है किरदार आपका’। तनवीर साकित ने‘ सामने मुंसिफ के जब रखे गए सारे सुबूत, नाम अब्दुल के सिवा उनको मिला कुछ भी नहीं’।
इसी तरह, अशफाक चकदीनवी ने ‘अजब ये दौर ए सितम है बता नहीं सकता, मैं जख्म ए दिल भी किसी को दिखा नहीं सकता’। वसीमुल हक असगर ने ‘बिखरा बिखरा हुआ हर आंख का सपना है यहां, आज इंसान को इंसान से खतरा है यहां’। नवनीत कृष्णा ने‘ उनको दुनिया की सब राहतें, मेरे हिस्से में गम रह गये’। आसिफ आजम ने ‘जरा सी बात पे पहलू बदल भी सकता है, सितम जरीफ मुझे तेरा ऐतबार नहीं’।‘ सुभाष चंद्र ने ‘वक्त आया है मुसकुराने का, भूल जाना है गम जमाने का’।
‘महेंद्र कुमार विकल ने ‘शिकवा भले हो रिश्ता निभाए हुए तो हैं, आखिर किसी के हम भी सताए हुए तो हैं’। असलम आजाद ने ‘रोज करता हूं रब से मैं तौबा, रोज फिर एक गुनाह करता हूं’। आसिफ आजम ने ‘दुश्मन ए जां से मुझे था खतरा लेकिन, कोई अपना ही मेरे खून का प्यासा निकला’। आसिफ तालिब ने ‘हुनर आ जाए गर मुझको भी बातें बनाने का, फिर तो जिन्दगी अपनी बहुत आसान हो जाए’। और जाहिद हुसैन आजाद ने ‘रंग ए चमन बहारे हसीं गुलसितां हूं मैं, शीरी जुबान बुलबुल ए हिन्दुस्तां हूं मैं’ गाकर लोगों से तारीफ हासिल की। मौके पर प्रो. सोनू रजक, डॉ. सुल्तान रजा, मास्टर मुअज्जम अली, मास्टर शमीम, मास्टर आफताब, इंजीनियर शाहिद अंजुम व अन्य लोग मौजूद थे।